Tuesday, May 31, 2016

ll जिंदगी का सफ़र ll
आज फिर वो अपना आखिरी मुकाम देख आया हुँ,
इस जिंदगी के सफ़र का क्या है अंजाम देख आया हुँ..!!
देख आया हुँ सब रिश्ते-नातों को पूर्ण-विराम होते हुये,
देख आया हुँ जीते जी ना पूछने वालों को भी बेसबब रोते हुये...!!
देखा मैंने कि कैसे जल्दी होती है ‪#‎जिस्म‬ घर से करने को विदा,
विलंब होने पर परेशान होते वो चेहरे जिन पर सारा जीवन कर दिया उसने फ़िदा..!!
देखा मैंने सबको उस निर्जीव की बस ‪#‎तारीफ़_ही_तारीफ़‬ करते हुए,
जिन्दा तरसता रहा जो तारीफ़ के दो मीठे बोल सुनने के लिए...!!
देख आया "अमित" उस सुंदर से जिस्म को धूं-धूं करके जलते हुये,
सजाया करते थे जिसे दिन-रात उसे कुछ मुठ्ठी भर राख बनते हुये...!!
© कुंवर अमित सिंह

No comments:

Post a Comment