Friday, May 18, 2012

कविता: फूल



पथिक ने पूछा फूल से,क्यों तुम ऐसे हो ,
क्यों हरदम खिलते मुस्कुराते रहते हो
चारो तरफ फैलाकर ये प्यार की खुशबू
सबको अपनी और आकर्षित करते हो

फूल ने कहाँ पथिक से हाँ मुझे ऐसा ही बनाया है ,
मालिक ने मुझ पर ही सिर्फ ये कर्म फ़रमाया है
मुसीबत रूपी काँटों के बीच में हमेशा रहकर
हरदम हँसना और महकना भी मुझे सिखाया है

माना मुझे जीवन बस कुछ पल का ही है मिला ,
करता नहीं इस बात का मै उस मालिक से गिला
सदा मुस्कुराना और जीवन महकाना है मेरा काम
शिकवा नही जो आती है जल्दी जिन्दगी की शाम

हे पथिक !कोशिश करो तुम भी मुझ जैसे बन जाओ
हमेशा मुस्कुराओ और दुसरो का जीवन महकाओ
मिला जो भी तुम्हे जीवन में उसे सदा हंसकर जीना
काँटों के बीच रहकर भी हमेशा यु ही मुस्कुराते रहना

****कुंवरानी मधु सिंह ****

2 comments: