मै नही जानती तेरे सारे रूपों को
हर वस्तु में विद्यमान आप है प्रभु
मिटटी से बने इस नश्वर तन को
ज्ञान की गंगा में डुबा दो प्रभु
झूठे जग के ,झूठे रिश्ते- नातो में
कितना फँसाओगे इस जीवन को
अब तो आत्मा को परमात्मा का
साक्षात्कार करा दो मेरे प्रभु
इस जीवन में जरूरत है आपकी
तेरी शरण में अब जिन्दगी है मेरी
जीवन के इन दुखो से निकाल कर
अपनी शरण में लगा लो प्रभु
जीव रूप को धारण किया है आत्मा ने
आवरण को छोड़ निकलती है आत्मा
फिर दुःख क्यों होता है इस जीवन में
चक्षु से आवरण का पर्दा हटा दो प्रभु
**कुंवरानी मधु सिंह **
अजब तेरी लीला अजब तेरी माया
ReplyDeleteसभी से अलग और सभी में समाया
पता मिल रहा है ,प्रभु पत्ते पत्ते से तेरा
गलत है जो कहते की तुम लापता हो
कुंवरानी मधु अमित सिंह आप की यह कविता बहुत ही अच्छी है जो की मनुष्य को भगवान से नाता जोड़ने की सीख देती है ,की एक ईश्वर ही है जो तेरा बेड़ा पार कर सकता है बाकी संसार में रिश्ते नातों के चक्कर में भगवान को मत भूल
बहुत ही अच्छा पर्यास है आपका
शुक्रिया शेखर भाई
ReplyDeleteBahut hi acha abhivadan !!
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