मन करता है ,कि
आज खुले आंसमा में
मै भी पंछी बनकर
हो जाऊ स्वछंद
न मिलु किसी को कही भी
ढूंढे चाहे सारे जन
खो जाऊ आंसमा में कही
हो जाऊ मै नजरबन्द
क्या रखा इस जीवन में
सब और है खालीपन
चल रहा है मन में मेरे
एक अंजाना सा अंतर्द्वंद
कैसे कैसे भटक रहा है
मेरा यह चंचल व्यस्क मन
कही तो होगा इसका भी
जीवन में भटकना बंद
अब तो प्रभु कि शरण में
ध्यान अपना मै लगाऊ
हर ले सारे कष्ट प्रभु मेरे
छुट जाये जीवन के फंद
**कुंवरानी मधु सिंह **
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